संधि
दो ध्वनियों (वर्णों) के परस्पर मेल को सन्धि कहते हैं। अर्थात् जब दो शब्द मिलते हैं तो प्रथम शब्द की अन्तिम ध्वनि (वर्ण)तथा मिलने वाले शब्द की प्रथम ध्वनि के मेल से जो विकार होता है उसे सन्धि कहते हैं।संधि के प्रकार
1) स्वर संधि2) व्यंजन संधि
3) विसर्ग संधि
स्वर संधि - स्वर के साथ स्वर के मेल को स्वर संधि कहते हैं . जैसे - विद्या + अर्थी = विद्यार्थी , सूर्य + उदय = सूर्योदय , मुनि + इंद्र = मुनीन्द्र , कवि + ईश्वर = कवीश्वर , महा + ईश = महेश . स्वर संधि के भेद
स्वर संधि के पाँच भेद हैं :-
1. दीर्घ संधि 2. गुण संधि 3. वृद्धि स्वर संधि 4. यण स्वर संधि 5. अयादी स्वर संधि
.दीर्घ संधि–
जब दो समान स्वर या सवर्ण मिल जाते हैँ, चाहे वे ह्रस्व होँ
या दीर्घ, या एक ह्रस्व हो और दूसरा दीर्घ, तो उनके स्थान पर एक दीर्घ स्वर
हो जाता है, इसी को सवर्ण दीर्घ स्वर संधि कहते हैँ। जैसे–
अ/आ+अ/आ = आ दैत्य+अरि = दैत्यारि राम+अवतार = रामावतार देह+अंत = देहांत धर्म+आत्मा = धर्मात्मा परम+आत्मा = परमात्मा कदा+अपि = कदापि आत्मा+ आनंद = आत्मानंद जन्म+अन्ध = जन्मान्ध श्रद्धा+आलु = श्रद्धालु सभा+अध्याक्ष = सभाध्यक्ष पुरुष+अर्थ = पुरुषार्थ
इ/ई+इ/ई = ई रवि+इन्द्र = रवीन्द्र मुनि+इन्द्र = मुनीन्द्र कवि+इन्द्र = कवीन्द्र गिरि+इन्द्र = गिरीन्द्र अभि+इष्ट = अभीष्ट शचि+इन्द्र = शचीन्द्र यति+इन्द्र = यतीन्द्र
उ/ऊ+उ/ऊ = ऊ भानु+उदय = भानूदय लघु+ऊर्मि = लघूर्मि गुरु+उपदेश = गुरूपदेश सिँधु+ऊर्मि = सिँधूर्मि सु+उक्ति = सूक्ति
गुण संधि–
अ या आ के बाद यदि ह्रस्व इ, उ, ऋ अथवा दीर्घ ई, ऊ, ॠ
स्वर होँ, तो उनमेँ संधि होकर क्रमशः ए, ओ, अर् हो जाता है, इसे गुण संधि
कहते हैँ। जैसे–
अ/आ+इ/ई = ए भारत+इन्द्र = भारतेन्द्र देव+इन्द्र = देवेन्द्र नर+इन्द्र = नरेन्द्र
अ/आ+इ/ई = ए भारत+इन्द्र = भारतेन्द्र देव+इन्द्र = देवेन्द्र नर+इन्द्र = नरेन्द्र
अ/आ+उ/ऊ = ओ सूर्य+उदय = सूर्योदय पूर्व+उदय = पूर्वोदय पर+उपकार = परोपकार लोक+उक्ति = लोकोक्ति
वृद्धि संधि–
अ या आ के बाद यदि ए, ऐ होँ तो इनके स्थान पर ‘ऐ’
तथा अ, आ के बाद ओ, औ होँ तो इनके स्थान पर ‘औ’ हो जाता है। ‘ऐ’ तथा ‘औ’
स्वर ‘वृद्धि स्वर’ कहलाते हैँ अतः इस संधि को वृद्धि संधि कहते हैँ। जैसे–अ/आ+ए/ऐ =ऐ एक+एक = एकैकमत+ऐक्य = मतैक्यसदा+एव = सदैवअ/आ+ओ/औ = औ वन+ओषध = वनौषध
परम+ओज = परमौज
परम+ओज = परमौज
यण संधि–
जब हृस्व इ, उ, ऋ या दीर्घ ई, ऊ, ॠ के बाद कोई असमान
स्वर आये, तो इ, ई के स्थान पर ‘य्’ तथा उ, ऊ के स्थान पर ‘व्’ और ऋ, ॠ के
स्थान पर ‘र्’ हो जाता है। इसे यण् संधि कहते हैँ।
इ/ई+अ = य
यदि+अपि = यद्यपि
परि+अटन = पर्यटन
यदि+अपि = यद्यपि
परि+अटन = पर्यटन
इ/ई+उ/ऊ = यु/यू
परि+उषण = पर्युषण
परि+उषण = पर्युषण
अयादि संधि–
ए, ऐ, ओ, औ के बाद यदि कोई असमान स्वर हो, तो ‘ए’
का ‘अय्’, ‘ऐ’ का ‘आय्’, ‘ओ’ का ‘अव्’ तथा ‘औ’ का ‘आव्’ हो जाता है। इसे
अयादि संधि कहते हैँ। जैसे–
ए/ऐ+अ/इ = अय/आय/आयि
ने+अन = नयन
शे+अन = शयन
ए/ऐ+अ/इ = अय/आय/आयि
ने+अन = नयन
शे+अन = शयन
व्यंजन संधि
परिभाषा - व्यंजन के साथ स्वर या व्यंजन के मेल को व्यंजन संधि कहते है . जैसे - दिक् + अंत = दिगंत,
सत् + जन = सज्जन , उत् + ज्वल = उज्ज्वल , सत् + आनंद = सदानंद , उत् + गम = उद्गम , परि + छेद = परिच्छेद , आ + छादन = आच्छादन , वि + छेद = विच्छेद .
सत् + जन = सज्जन , उत् + ज्वल = उज्ज्वल , सत् + आनंद = सदानंद , उत् + गम = उद्गम , परि + छेद = परिच्छेद , आ + छादन = आच्छादन , वि + छेद = विच्छेद .
विसर्ग संधि
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन का मेल होने पर जो विकार होता है , उसे विसर्ग संधि कहते हैं !
निः + रोग = निरोग . निः + संकोच = निस्संकोच , नमः + कार = नमस्कार , निः +
तार = निस्तार , मनः + ताप = मनस्ताप , दुः + कर्म = दुष्कर्म , आवि : +
कार = आविष्कार .
It is very helpful for my exam
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